आदमी की औकात कविता
1.कुछ मीटर कपडे में थोड़ा सा कफ़न, थोड़ी सी मिट्टी में हो गया दफ़न,ना कुछ माल काम आया,ना कुछ सौगात बस इतनी सी है आदमी की औकात। 2.चार कंधो पर चला हैं, जीवन भर लोगो को तला है, धरी की धरी रह गई जात पात बस इतनी सी है आदमी की औकात। 3.माँ -बाप-भाई-बहन सबका छूट गया साथ,लोग भी कर रहे है तेरे बारे में सिर्फ बात, बस इतनी सी है आदमी की औकात। 4.जीवन में रंज रह गई, थोड़ी सी कसक रह गई, कोई ना रहा तेरे साथ, तेरा शरीर भी हो गया राख , बस इतनी सी है आदमी की औकात बस इतनी सी है आदमी की औकात। 🙏🏻मयंक शुक्ला🙏🏻