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Showing posts from March, 2018

"आप धीरे-धीरे मरने लगते हो"

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                    कुछ पंक्तिया शीर्षक है                "आप धीरे- धीरे मरने लगते हो" 1.जब आप किसी बच्चे के साथ बच्चा नही बन पाते हो,जब आप अपने मन की नही सुन पाते हो, जब आप अपने मन की सुनकर भी अनसुना सा कर देते हो तब आप धीरे -धीरे मरने लगते हो........................... 2.जब आप थक-हार के घर जाते हो,जब आप सुबह से शाम तक मुस्कुरा नही पाते हो,जब आप परेशानियों में उलझ से जाते हो तब आप धीरे- धीरे मरने लगते हो.............. 3. जब आप किसी परिस्थिति को जीत नही पाते हो,जब आप अपने मन से ही हार जाते हो,जब आप अपनी समस्या को खुद नही सुलझा पाते हो तब आप धीरे -धीरे मरने लगते हो ......... 4.जब आप सब कुछ छोड़कर पैसो के पीछे भागते हो,जब आप सबकुछ पाकर भी बहुत कुछ खो देते हो, जब आप छोटे-छोटे पलो का मजा नही ले पाते हो तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हो......... 5. जब आप किसी जरूरतमंद की मदद नही कर पाते हो,जब आप किसी के दुख का हिस्सा नही बन पाते हो, जब आप भीड़ में भी अकेला महसूस करते हो तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हो.............. 6.जब आप जीवन की भागदौड़ में अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज करते ह

"जातिगत आरक्षण"

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              सामान्य वर्ग की व्यथा पर कुछ पंक्तिया मै भी सामान्य वर्ग का दलित हु साहब मुझे भी आरक्षण चाहिए.. 1.मेरी माँ का सपना है बेटा सरकारी अफसर बने,पिता दिन-रात मेहनत करके उस सपने को बुने, मेरे मात-पिता के सपनो को यू ना जलाइये, मै भी सामान्य वर्ग का दलित हु साहब मुझे भी आरक्षण चाहिए.......... 2.पिता ने कर्ज लेकर पढ़ाया मुझको, इस आस में की बेटा एक दिन सुत समेत चुका देगा इसको, एक पिता की मेहनत को इस कदर ना बहाइये , मै भी सामान्य वर्ग का दलित हु साहब मुझे भी आरक्षण चाहिए............ 3.बहन की आस हु मै, पिता का विश्वास हु मै, मेरे माँ के सपनो का साकार रूप हु मै, इतनो की आस को यू ना डुबाइये, मै भी सामान्य वर्ग का दलित हु साहब मुझे भी आरक्षण चाहिए........... 4.जब बेटा डिग्री लेकर घर को जाता है, मात-पिता सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है,रोजगार की तलाश में अब यू ना भटकइये, मै भी सामान्य वर्ग का दलित हु साहब मुझे भी आरक्षण चाहिये... 5.जब कभी भी घर जाता हूं मैं, मात-पिता के सपनो को उनकी आंखों में देखकर कई दफा मर जाता हूं मैं,अब मुझे अपनी नजरो में ही इतना मत गिराइये, मै भी सामान्य वर्

"नारी शक्ति"

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       "विश्व महिला दिवस " कुछ पंक्तिया शीर्षक है                   "हा एक नारी हु  मै" 1. हा एक नारी हु मै, औरो के सपनो पर जीती हु, घर के किसी कोने में रोती हु; बिलखती हु, लोगो की नजरों में बेचारी हु मै, हा एक नारी हु मै......... 2.अपमानों का घुट पीकर रह जाती हूं मैं, कभी दहेज के लिए , कभी सिरफिरे आशिक के लिए जला दी जाती हूं मैं, सम्मान की आस में अपना पूरा जीवन गुजारी हु मै, हा एक नारी हु मै......... 3.कभी कभी तो मुझे माँ की कोख मे ही मार दिया जाता हैं, मेरी नन्ही सी दुनिया को चंद महीनों में ही उजाड़ दिया जाता है, मत मारो माँ ये आवाज माँ की कोख मे से पुकारी हु मै, हा एक नारी हु मै..... 4.लोगो की मैली नजर को दिनभर ढोती हु मै, कभी कभी अपनो का ही शिकार होती हु मै, अपनो पर ही भरोसा नही कर पा रही हु मै , हा एक नारी हु मै........ 5.कभी दुर्गा ,लक्ष्मी , सरस्वती के रूप में पूजी जाती हु मै, कभी लोगो की हवस के लिए नोची जाती हु मै,अपनो के सम्मान में जिंदगी जीती जारही हु मै, हा एक नारी हु मै......... 6.काश मुझे भी समान हक़ दिया जाता,अपने हिसाब से मुझे जीने दिया जाता
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      होली के पावन पर्व पर कुछ पंक्तिया शीर्षक है              "कि आ सखी होली खेले" 1.कि आ सखी होली खेले,  कुछ रंग प्यार के, कुछ रंग दुलार के ,कुछ रंग एक दूसरे के साथ के एक दूसरे पे उड़ेले  कि आ सखी होली खेले। 2.नफरतो के रंग को, दुनिया के प्रपंचो को , अपने अंदर की बुराइयों को चल यही छोड़ चले , की आ सखी होली खेले.......... 3.हँसी, खुशी ,मुस्कुराहट के रंगों को एक दूसरे के संग में घोले, की आ सखी होली खेले.. ..... 4.इस अकेलेपन को, जीवन के नीरस रंग को ,इंद्रधनुष जैसे सतरंगी रंगों में रंगेले, की आ सखी होली खेले................... 5.संसार के झमेलों से , दुनिया के मेलो से चल कही दूर चले ,कि आ सखी होली खेले............ 6.नफरतो के रंग को,गलतफहमियों से पैदा हुए कड़वे संबंध को प्यार के रंगों में घोले ,कि आ सखी होली खेले........ 7.इछारूपी रंग ना कभी पूरा होने वाला है, इसलिए जहा है वही का मजा ले , इतने सारे रंगों को अपने जीवन मे उड़ेले कि आ सखी होली खेले............✍🏻 मयंक शुक्ला✍🏻