होली के पावन पर्व पर कुछ पंक्तिया शीर्षक है
             "कि आ सखी होली खेले"
1.कि आ सखी होली खेले,  कुछ रंग प्यार के, कुछ रंग दुलार के ,कुछ रंग एक दूसरे के साथ के एक दूसरे पे उड़ेले  कि आ सखी होली खेले।
2.नफरतो के रंग को, दुनिया के प्रपंचो को , अपने अंदर की बुराइयों को चल यही छोड़ चले , की आ सखी होली खेले..........
3.हँसी, खुशी ,मुस्कुराहट के रंगों को एक दूसरे के संग में घोले, की आ सखी होली खेले.. .....
4.इस अकेलेपन को, जीवन के नीरस रंग को ,इंद्रधनुष जैसे सतरंगी रंगों में रंगेले, की आ सखी होली खेले...................
5.संसार के झमेलों से , दुनिया के मेलो से चल कही दूर चले ,कि आ सखी होली खेले............
6.नफरतो के रंग को,गलतफहमियों से पैदा हुए कड़वे संबंध को प्यार के रंगों में घोले ,कि आ सखी होली खेले........
7.इछारूपी रंग ना कभी पूरा होने वाला है, इसलिए जहा है वही का मजा ले , इतने सारे रंगों को अपने जीवन मे उड़ेले कि आ सखी होली खेले............✍🏻 मयंक शुक्ला✍🏻

Comments

Popular posts from this blog

"माँ"

"नारी शक्ति"

आदमी की औकात कविता

वो लड़की

"कोई मेरे बचपन के पल लौटा दो"

आज के समय की सबसे बेहतरीन पंक्तिया

कुछ दर्द उन बच्चीयों के लिए

"झूठी खुशियो में दम तोड़ते रिश्ते"