"झूठी खुशियो में दम तोड़ते रिश्ते"
मेरी पहली कहानी,
जिसका शीर्षक है
"झूठी खुशिया, दम तोड़ते रिश्ते"
अरुणिमा- अपने पति अरुण से अजी सुनते हो, जल्दी उठो ना ।
कहकर काम करने चली गयी।
अरुण भी उठकर अपनी पत्नी अरुणिमा को गले लगाते हुए कहते है इस जीवन की भागदौड़ में ना जाने कब 38 वर्ष पूर्ण हो गए , हम दोनों को लड़ते झगड़ते।
अरुणिमा- वोही तो कह रही हु बेटा बहु आने वाले है उनका मनपसन्द खाना जो बनाना है। बहुत काम है और ऊपर से आप नही उठ रहे थे। इतना कहकर अरुणिमा काम मे लग जाती है।
अरुण भी अपने 38 वर्ष के चिंतन में डूब जाते है, कैसे लड़ते झगड़ते, बच्चों की परवरिश फिर उनकी पढ़ाई , लिखाई शादी आदि जिम्मेदारियां निभाते-निभाते जीवन के 38 वर्ष पूर्ण हो जाते है।
इतने में अरुणिमा गरमागरम चाय लाकर देती है और कहती है कहा खो गए जनाब, अरुण कुछ नही बस युही।
इतने में मोबाइल फ़ोन की घंटी सुनाई देती है, अरुणिमा तेज चहल कदमी करते हुए , फ़ोन उठाती है, उधर से आवाज आती है माँ शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं धन्यवाद बेटा,अरुणिमा की खुशी का ठिकाना नही रहता आखिरकार फ़ोन भी 2 महीने बाद आया था; बेटे का, ले बाबुजी से बात कर ले ऐसा कहकर अरुणिमा फ़ोन अरुण को देती है।
अरुण- हा बेटा बाबुजी प्रणाम उधर से आवाज आती है, फिर सालगिरह की शुभकामनाएं ,फिर अर्नव कुछ कहता है और बाबुजी हा कहकर फ़ोन रख देते है।
अरुणिमा- मैने कहा था ना अर्नव आज जरूर आएगा, आ रहा है ना अर्नव?
अरुण - हा
अरुणिमा- मै जल्दी से बेटे बहु की पसंद का खाना बनाती हु , फिर अपन मंदिर चलेगे।
अरुण- ठीक है, तुम तैयार हो मै बाजार से आया, ऐसा कहकर अरुण बाजार चले जाते है।
अरुणिमा- भी काम मे लग जाती है, बेटे के बारे में सोचती है आखिरकार 6महीने में जो आ रहा था। बहु को पढ़ाने के लिए 2 साल से इसी शहर में अलग जो रह रहा था।
इतने में अरुण बाजार से आते है फिर दोनों मंदिर जाते है, घर आकर बेटे बहु का इंतजार करते है।
बेटे -बहु का इंतजार करते करते ना जाने कब शाम के 5 बज जाते है।
कोई दरवाजा खटखटाता है, अरुणिमा जल्दी से दरवाजा खोलती है और कहती है आओ बेटा , बहु को नही लाये?
अर्नव- नही माँ वो आपके लिए और बाबुजी के लिए कपड़े ला रही है बस आती होगी।
इतने में बहु भी आ जाती है।
बाबुजी से आशीर्वाद लेते है फिर साथ मे बैठकर खाना खाते है।
बहु भी आज बहुत ही अच्छी बातें करती है, अरुणिमा को लगता है कि शायद वो ही गलत थी।
बाबुजी के कमरे में जाकर अर्नव बाबुजी को कुछ याद दिलाता है, बाबुजी भी हा भूल गया था, कहकर अर्नव को कुछ देते है।
फिर अर्नव और उसकी पत्नी खुशी- खुशी अपने घर को चले जाते है।
अरुणिमा- अरुण से, देखो ना बच्चे कितने अच्छे , कितने अच्छे कपड़े लाये अपने लिए , कितना ख्याल रखते है अपना ऐसा सबकुछ कहते हुए खुश हो रही थी।
अरुण- हा में जवाब देते हुए, गहरी सोच में डूब जाते है, कि यदि बहु की फीस ना भरनी होती तो क्या पता अर्नव या बहु आते भी की नही, अरुण सोचते है कि वो सच मे हमारी शादी की सालगिरह मनाने आये थे , या फिर बहु के फीस के पैसे लेने।
इसी सोच के साथ अरुण अपने को कुछ ठगा हुआ महसूस करते है।
अरुणिमा- झूठी खुशियो में और बेटे बहु की तारीफों करते नही थक रही थी।
अरुण- खुशिया झूठी ही सही अरुणिमा की खुशी के लिए हा मे हा मिला रहे थे।
आप तय करे सच क्या है............✍🏻मयंक शुक्ला✍🏻
बहुत सच
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