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चुनाव आ गए

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चुनाव पर मेरी व्यंग भरी रचना जरूर पढे, रचना का शीर्षक है                   "लगता है चुनाव आ गए" 1. जो कल तक हमे देखते नही थे, आज हमे देखकर मंद -मंद मुस्कुरा गए,आजकल हमारे भी बाजार में कुछ भाव आ गए , लगता है चुनाव आ गए। 2.जो अपने ही किये वादों से भागे फिरते थे, आज नयी  घोषणाओं के साथ फिर वही जनाब  आ गए। जो कल तक मंहगी गाड़ियों में फिरते थे, आज उनके भी पाँव आ गए , लगता है चुनाव आ गए। 3.जिनके चक्कर मे कल तक हम दफ्तर दफ्तर फिरते थे , आज हमारी घर की चौखट पर वो भी दबे पाँव आ गए औऱ कभी कभार ही अमा गरीब की थाली में भी पुलाव आ गए,लगता है चुनाव आ गए। 4.माँ दादी , भैया -भाभी ना जाने कितने रिश्तों से जोड़ा उन्होंने, जो हमे कल तक पहचानते नही थे, आज उनको हमारे साथ सारे रिश्ते याद आ गए, लगता है चुनाव आ गए। 5.कल तक हम भाई-भाई हुआ करते थे, आज वो हमको आपस मे ही लड़ा गए। मंदिर -मस्जिदों के मुद्दे उन्हें अचानक ही याद आ गए, लगता है चुनाव आ गए । 6.माना कि ये कल हमारे पास नही आएंगे, लेकिन हम भी अपना फर्ज जरूर निभाएंगे। मतदान करके हम अपना फर्ज निभा गए, लगता है चुनाव आ गए। ✍🏼मयंक शुक