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मोटिवेशनल कविता

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जिंदगी का हौसला बुलंद करने के लिए आज कुछ पंक्तिया प्रस्तुत कर रहा हु। जीवन मे कभी ना कभी असफलताओ का सामना करना पड़े तो ये पंक्तियां जरूर पढ़ना।  शीर्षक है   "उठ खड़ा हो सूरज कभी उगना     नही छोड़ता है"  1.हताश है तू, निराश है तू, खो चुका मन की आस है तू। माना तुझे तेरे मन का मिला नही, अब तुझमे पहले जैसा हौसला नही। बुढ़ा बाप भी कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुँह नही मोड़ता है। उठ, खड़ा हो सूरज कभी उगना नही छोड़ता है। 2. माना हादसों से टूट गया है तू, अपने ही अंदर बट गया है तू। घनघोर अंधेरा है तो क्या हुआ, दूर अभी सबेरा है तो क्या हुआ। चाहे अमावस की रात हो, सबेरा कभी आना नही छोड़ता है। उठ, खड़ा हो सूरज कभी उगना नही छोड़ता है। 3. याद कर कभी चन्द्रमा का चांद था तू, अपने वक़्त का बेताज सरताज था तू। अब तू क्यों इतना मायूस होता है, अरे मासूम बच्चा भी गिरकर ही चलना सीखता है। स्वर्ण तभी निखरता है, जब वो तपता है। उठ, खड़ा हो सूरज कभी उगना नही छोड़ता है। 4.अब नही कर पाऊंगा, मुझसे होता नही। बिना संघर्ष के तो तितली का भी जन्म होता नही। मन से हारा है, सच मे हारा नही ह

" मेरे सपनों का भारत कुछ ऐसा हो'

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एक अतुलनीय भारत के बारे मे मैने सोचा जिन्हें पंक्तियों में उतारा है ,पसन्द आये तो प्रतिक्रिया जरूर दे                              शीर्षक है            "काश मेरे सपनों का भारत कुछ ऐसा हो" 1.जहा ना नफरतो का रंग हो, आपसी प्रेम और दिल मे कुछ करने की उमंग हो। जहा भी जाये सब संग-संग हो, सब पर मोहब्बतों के रंग हो। जहा सबकुछ पैसा ना हो, मेरे सपनों का भारत कुछ ऐसा हो। 2.ना किसी को जाति के नाम पर दुत्कारा जाता हो, और ना ही कोई बच्चा गरीबी के कारण पढ़ाई से वंचित रह जाता हो। जहा ना दहेज की लालसा में बेटिया जलायी जाती हो, और जहा ना ही बेटे की लालच मे गर्भ में ही बेटिया मिटायी जाती हो। जैसा मैंने लिखा बस वैसा का वैसा हो, मेरे सपनों का भारत कुछ ऐसा हो। 3. जहा बच्चे बड़े होने पर भी अपनी माँ के साथ रहते हो, बड़ो के सामने एक लब्ज तक ना बोलते हो। जहा बहु में बेटी नजर आती हो, और बहू को भी सासु माँ की खटपट बहुत भाती हो। जहा पिताजी को आज भी "बाबुजी" का दर्जा हो, मेरे सपनो का भारत कुछ ऐसा हो। 4. लोगो की जाने लेना ना जन्नत का रास्ता हो,मेरे भारत का दूर-दूर तक इन सबसे ना कोई

"झूठी खुशियो में दम तोड़ते रिश्ते"

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मेरी पहली कहानी, जिसका शीर्षक है "झूठी खुशिया, दम तोड़ते रिश्ते" अरुणिमा- अपने पति अरुण से अजी सुनते हो, जल्दी उठो ना । कहकर काम करने चली गयी। अरुण भी उठकर अपनी पत्नी अरुणिमा को गले लगाते  हुए कहते है इस जीवन की भागदौड़ में ना जाने कब 38 वर्ष पूर्ण हो गए , हम दोनों को लड़ते झगड़ते। अरुणिमा- वोही तो कह रही हु बेटा बहु आने वाले है उनका मनपसन्द खाना जो बनाना है। बहुत काम है और ऊपर से आप नही उठ रहे थे। इतना कहकर अरुणिमा काम मे लग जाती है। अरुण भी अपने 38 वर्ष के चिंतन में डूब जाते है, कैसे लड़ते झगड़ते, बच्चों की परवरिश फिर उनकी पढ़ाई  , लिखाई शादी आदि जिम्मेदारियां निभाते-निभाते जीवन के 38 वर्ष पूर्ण हो जाते है। इतने में अरुणिमा गरमागरम चाय लाकर देती है और कहती है कहा खो गए जनाब, अरुण कुछ नही बस युही। इतने में मोबाइल फ़ोन की घंटी सुनाई देती है, अरुणिमा तेज चहल कदमी करते हुए , फ़ोन उठाती है, उधर से आवाज आती है माँ शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं धन्यवाद बेटा,अरुणिमा की खुशी का ठिकाना नही रहता आखिरकार फ़ोन भी 2 महीने बाद आया था; बेटे का, ले बाबुजी से बात कर ले ऐसा कहकर अरुणिमा फ़

मैने हार कब मानी है

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     ऊर्जा का संचार करने के लिए कुछ पंक्तिया प्रस्तुत कर रहा हु शीर्षक है-                     "मैने हार कब मानी है" 1.माना घना अंधेरा है , दूर अभी सबेरा है। पग पग चलना है, इन दुखो से लड़ना है। यही तो जीवन की रवानी है, लेकिन मैंने हार कब मानी है। 2.समस्याओ ने घेरा है , डाला मुझ पर डेरा है। अंधेरो से तो मेरा पुराना नाता है, इन्हें मेरा घर कुछ ज्यादा ही भाता है। दुख सुख तो इस जीवन की कहानी है, लेकिन मैंने हार कब मानी है। 3. अपनो के ही चक्रव्यूह में घिर गया हूं, ये ना सोचो कि डर गया हूं। निकलना मुझे भी आता है, संघर्षो से तो मेरा पुराना नाता है। मेरे अंदर दौड़ रहा खून खानदानी है, मैने हार कब मानी है। 4.मुझसे ना कभी हो पायेगा ऐसा कभी मैने सोचा नही। लाख मुश्किलें आयी लेकिन मैं कभी हारा नही। आंधी तूफानो ने कब बरगद की जड़े उखाड़ी है। आज उनकी तो कल अपनी भी बारी है। अरे इन सबसे तो मेरी दोस्ती बहुत पुरानी है, मैने हार कब मानी है। 5. जब कभी भी हालातो के सामने टिक ना पाओ। जब कभी भी परिस्थितियों के सामने कदम डगमगाओ। तब इन पंक्तियों को पढ़ना, तुम्ह

चुनाव आ गए

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चुनाव पर मेरी व्यंग भरी रचना जरूर पढे, रचना का शीर्षक है                   "लगता है चुनाव आ गए" 1. जो कल तक हमे देखते नही थे, आज हमे देखकर मंद -मंद मुस्कुरा गए,आजकल हमारे भी बाजार में कुछ भाव आ गए , लगता है चुनाव आ गए। 2.जो अपने ही किये वादों से भागे फिरते थे, आज नयी  घोषणाओं के साथ फिर वही जनाब  आ गए। जो कल तक मंहगी गाड़ियों में फिरते थे, आज उनके भी पाँव आ गए , लगता है चुनाव आ गए। 3.जिनके चक्कर मे कल तक हम दफ्तर दफ्तर फिरते थे , आज हमारी घर की चौखट पर वो भी दबे पाँव आ गए औऱ कभी कभार ही अमा गरीब की थाली में भी पुलाव आ गए,लगता है चुनाव आ गए। 4.माँ दादी , भैया -भाभी ना जाने कितने रिश्तों से जोड़ा उन्होंने, जो हमे कल तक पहचानते नही थे, आज उनको हमारे साथ सारे रिश्ते याद आ गए, लगता है चुनाव आ गए। 5.कल तक हम भाई-भाई हुआ करते थे, आज वो हमको आपस मे ही लड़ा गए। मंदिर -मस्जिदों के मुद्दे उन्हें अचानक ही याद आ गए, लगता है चुनाव आ गए । 6.माना कि ये कल हमारे पास नही आएंगे, लेकिन हम भी अपना फर्ज जरूर निभाएंगे। मतदान करके हम अपना फर्ज निभा गए, लगता है चुनाव आ गए। ✍🏼मयंक शुक

अटल जी को नमन

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    अटल बिहारी वाजपेयी जी पर कुछ पंक्तिया लिखने की           कोशिश की कविता का शीर्षक है       "हर हिदुस्तानी के जेहन में तुम्हारा नाम अटल था, अटल          है और अटल रहेगा" 1.उनके जैसा ना था , ना है और ना रहेगा, इस दुनिया मे तुम्हारा नाम हमेशा रहेगा, इस देह रूप में तुम हमारे साथ  ना हुए तो क्या हुआ, तुम्हारे विचारो का शमा हमेशा बना रहेगा, हर हिदुस्तानी के जेहन में तुम्हारा नाम अटल था अटल है और अटल रहेगा। 2. गॉवो से भारत जोड़ो का नारा दिया तुमने, भारत को विकास की गतिशीलता पर लाकर खड़ा किया तुमने। तुम्हारी एक एक कविताओं से युवाओं में जन्मो जन्मो तक अदम्य साहस भरा रहेगा, हर हिदुस्तानी के जेहन में तुम्हारा नाम अटल था, अटल है और अटल रहेगा........... 3.जब उस कायर पाकिस्तान ने धमकी दी परमाणु हमले की, तुम्हारे दो टूक जवाब से ही उसने दोबारा ना हिम्मत की बोलने की। अगर हुआ परमाणु हमला तो माना आधा हिदुस्तान गवा दिया हमने, लेकिन कल सुबह इस धरती पर पाकिस्तान का नामोनिशान नही रहेगा। हर हिदुस्तानी के जेहन में तुम्हरा नाम अटल था , अटल है और अटल रहेगा.........         शत शत नमन    

"हे भारत माँ"

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                   एक सैनिक की भारत माँ से बात                        कविता का शीर्षक है "माँ ये  तेरा स्वभिमान ना मिटने देगे हम, इस पावन मिट्टी का मान ना घटने देगे हम।" 1. माँ तेरे बच्चे इस धरा पर खड़े है सीना तान के, हे किसमे हिम्मत जो आँख उठा लेगा भारत के सम्मान पे। बात अगर आयी लहू बहाने की तो लहू की नदियां तक बहा देगे हम, माँ ये स्वाभिमान ना मिटने देगे हम.......... 2. एक शीश के बदले अनेको शीश लाने का प्रण लेते है, माँ तेरे सैनिक बेटे खून का कतरा-कतरा न्योछावर कर देते है। घर की माँ का बेटा  ना आये तो गम नही, पत्नी का श्रृंगार न्योछावर हो जाये तो गम नही। भारत माँ तेरे श्रृंगार में कुछ ना कमी होने देंगे, माँ ये स्वाभिमान ना मिटने देगे हम............. 3.माँ तेरे टुकड़े करने का इन गद्दारो में दम नही, ये बुजदिल गरजने वाले बादल है इनके बरसने का कोई मौसम नही। भारत भूमि पर देखने की कोशिस की तो ये कभी ना देख पायेगे, अरे  जलती हुई राडो से इनकी आंखों की रोशनी को ओझल कर देंगे हम। माँ ये तेरा स्वाभिमान ना मिटने देगे हम...........…..... 4. हा मैने माँ से वादा किया था कि