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Showing posts from May, 2019

" मेरे सपनों का भारत कुछ ऐसा हो'

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एक अतुलनीय भारत के बारे मे मैने सोचा जिन्हें पंक्तियों में उतारा है ,पसन्द आये तो प्रतिक्रिया जरूर दे                              शीर्षक है            "काश मेरे सपनों का भारत कुछ ऐसा हो" 1.जहा ना नफरतो का रंग हो, आपसी प्रेम और दिल मे कुछ करने की उमंग हो। जहा भी जाये सब संग-संग हो, सब पर मोहब्बतों के रंग हो। जहा सबकुछ पैसा ना हो, मेरे सपनों का भारत कुछ ऐसा हो। 2.ना किसी को जाति के नाम पर दुत्कारा जाता हो, और ना ही कोई बच्चा गरीबी के कारण पढ़ाई से वंचित रह जाता हो। जहा ना दहेज की लालसा में बेटिया जलायी जाती हो, और जहा ना ही बेटे की लालच मे गर्भ में ही बेटिया मिटायी जाती हो। जैसा मैंने लिखा बस वैसा का वैसा हो, मेरे सपनों का भारत कुछ ऐसा हो। 3. जहा बच्चे बड़े होने पर भी अपनी माँ के साथ रहते हो, बड़ो के सामने एक लब्ज तक ना बोलते हो। जहा बहु में बेटी नजर आती हो, और बहू को भी सासु माँ की खटपट बहुत भाती हो। जहा पिताजी को आज भी "बाबुजी" का दर्जा हो, मेरे सपनो का भारत कुछ ऐसा हो।...

"झूठी खुशियो में दम तोड़ते रिश्ते"

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मेरी पहली कहानी, जिसका शीर्षक है "झूठी खुशिया, दम तोड़ते रिश्ते" अरुणिमा- अपने पति अरुण से अजी सुनते हो, जल्दी उठो ना । कहकर काम करने चली गयी। अरुण भी उठकर अपनी पत्नी अरुणिमा को गले लगाते  हुए कहते है इस जीवन की भागदौड़ में ना जाने कब 38 वर्ष पूर्ण हो गए , हम दोनों को लड़ते झगड़ते। अरुणिमा- वोही तो कह रही हु बेटा बहु आने वाले है उनका मनपसन्द खाना जो बनाना है। बहुत काम है और ऊपर से आप नही उठ रहे थे। इतना कहकर अरुणिमा काम मे लग जाती है। अरुण भी अपने 38 वर्ष के चिंतन में डूब जाते है, कैसे लड़ते झगड़ते, बच्चों की परवरिश फिर उनकी पढ़ाई  , लिखाई शादी आदि जिम्मेदारियां निभाते-निभाते जीवन के 38 वर्ष पूर्ण हो जाते है। इतने में अरुणिमा गरमागरम चाय लाकर देती है और कहती है कहा खो गए जनाब, अरुण कुछ नही बस युही। इतने में मोबाइल फ़ोन की घंटी सुनाई देती है, अरुणिमा तेज चहल कदमी करते हुए , फ़ोन उठाती है, उधर से आवाज आती है माँ शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं धन्यवाद बेटा,अरुणिमा की खुशी का ठिकाना नही रहता आखिरकार फ़ोन भी 2 महीने बाद आया था; बेटे का, ले बाबुजी से बात कर ले ऐसा कहकर अरुणिमा फ़...