वो लड़की
थोड़ी सी चुलबुली,नटखट अनमनी सी थी वो लडकी। दो के पहाड़े जैसी सीधी एक से दस तक गिनती थी वो लड़की। थोड़ा सा गुस्सा थोड़े से नखरे चंद बातो में ही आ जाते थे उसको, मेरे लिये खुदा की इबादत थी वो लडकी। बात बात पर गुस्सा हो जाना, थोड़ा सा मनाने पर उसका मान जाना, दुनिया के लिए कुछ भी हो मेरे चेहरे की रौनक थी वो लडकी। चोरी छुपके से देखना , आवाज सुनते ही छत पर आजाना घर वालो के गुस्सा होने पर मेरे से लिपट कर रोया करती थी वो लड़की। कभी कंधे पर सर रखकर कभी बाहों में लिपटकर, जब भी मिलती थी खो जाया करती थी वो लड़की। जानता हूं दूर हे मिल नहीं सकती, लेकिन फिर भी मेरे पर जान छिड़कती थी वो लड़की। कहती है अब प्यार नहीं है तुमसे लेकिन बातो ही बातो में प्यार का इजहार किया करती थी वो लड़की। कहती थी अब ना छोडूंगी, वादा ना तोडूंगी, लेकिन सबकुछ छोड़कर ना जाने कहा चली गयी वो लडक़ी। ना जाने कब उसकी यादो में खोता गया मै, मेरी कलम चलीं और शब्दों में बयां होती गयी वो लड़की।। मयंक शुक्ला