"अब सुकून कहा"
पंक्तियों का शीर्षक है
"अब सुकूँ कहा"
1.सुबह से ही भागदौड़ करता हु मैं, बिना शाम के ही रातो को जी रहा हु मै, दुनिया तो बस इधर से उधर दौड़े जा रही है कभी यहा कभी वहा, अब सुकूँ कहा........
2.माँ की गोद मे सिर रख कर ना जाने कब सोया था मै, ना जाने कब पिताजी को याद करके रोया था मै, अब तो बॉस की ही बातों में मिलाते जा रहा है हा में हा, अब सुकून कहा.........
3.दुनिया भी बहुत कुछ बटोर रही है कुछ ना ले जाने के लिए, मै भी उसका हिस्सा हु ना जाने किसलिए, अपनो से बात किये बिना बित गया एक अरसा , अब सुकून कहा.........
4. चौपालों पर बैठकर दोस्तो के साथ बाते करता था मैं, उन पलों को खुशियो से जीता था मै, उन चौपालों की शामो में बस जाता था पूरा जहाँ, अब सुकूँ कहा.......
5.पहले साधनों के अभाव में भी खुशी से जीते थे हम, बिन बिजली पंखे के भी सुकून से सोते थे हम, अब तो मखमल के गद्दों पर भी वैसी नींद कहा, अब सुकूँ कहा...…......
✍🏼मयंक शुक्ला✍🏼
"अब सुकूँ कहा"
1.सुबह से ही भागदौड़ करता हु मैं, बिना शाम के ही रातो को जी रहा हु मै, दुनिया तो बस इधर से उधर दौड़े जा रही है कभी यहा कभी वहा, अब सुकूँ कहा........
2.माँ की गोद मे सिर रख कर ना जाने कब सोया था मै, ना जाने कब पिताजी को याद करके रोया था मै, अब तो बॉस की ही बातों में मिलाते जा रहा है हा में हा, अब सुकून कहा.........
3.दुनिया भी बहुत कुछ बटोर रही है कुछ ना ले जाने के लिए, मै भी उसका हिस्सा हु ना जाने किसलिए, अपनो से बात किये बिना बित गया एक अरसा , अब सुकून कहा.........
4. चौपालों पर बैठकर दोस्तो के साथ बाते करता था मैं, उन पलों को खुशियो से जीता था मै, उन चौपालों की शामो में बस जाता था पूरा जहाँ, अब सुकूँ कहा.......
5.पहले साधनों के अभाव में भी खुशी से जीते थे हम, बिन बिजली पंखे के भी सुकून से सोते थे हम, अब तो मखमल के गद्दों पर भी वैसी नींद कहा, अब सुकूँ कहा...…......
✍🏼मयंक शुक्ला✍🏼
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